हिंदी व्याकरण - संज्ञा


 For PDF Of Video lecture CLICK HERE 





 To watch this video on YouTube click here


हिंदी व्याकरण

अध्याय 3

संज्ञा


परिभाषा-

किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव आदि के नामों को "संज्ञा कहते हैं जैसे-पत्थर, मनुष्य, मूर्खता, राम, सेना आदि।

संज्ञा के निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं

 

(क) व्यक्तियों, नदियों, पहाड़ों, राज्यों, देशों, महादेशों, पुस्तकों, पत्र पत्रिकाओं, ग्रह-नक्षत्रों, दिनों, महीनों आदि के नामों का बोध कराना। जैसे बलराम, गंगा, विन्ध्याचल, बिहार, रूस, एशिया, कामायनी, चन्दामामा आदि।

 

(ख) पशुओं, पक्षियों, मिठाइयों, सब्जियों आदि के नामों का बोध कराना। जैसे-गाय, कबूतर, जलेबी, साइकिल आदि।

 

(ग) समूह का बोध कराना। जैसे-झुंड, सेना आदि।

 (घ) किसी धातु या द्रव्य का बोध करानाजैसे—सोना, चाँदी, घी आदि।

 (ङ) व्यक्ति या पदार्थों के भाव, धर्म, गुण आदि का बोध कराना

    जैसे—दया, कृपा, मित्रता, उष्णता, चतुराई आदि

संज्ञा के भेद

 

संज्ञाओं के भेद अनेक आधारों पर किये जा सकते हैं

 

पहला वर्गीकरण वस्तु की जीवंतता या अजीवंतता के आधार पर-

     प्राणि वाचक संज्ञा तथा अप्राणिवाचक संज्ञा के रूप में किया जा सकता है।

लड़का, घोड़ा, पक्षी आदि में जीवन है, ये चल-फिर सकते हैं; अतः इन्हें प्राणिवाचक संज्ञा कहेंगे

    ईट, दीवार आदि में जीवन नहीं है; येचल सकते हैं, न बोल सकते हैंइसलिए इन्हें अप्राणिवाचक संज्ञा कहेंगे

दूसरा वर्गीकरण गणना के आधार पर हो सकता है

आम शब्द को लें। 'आम' को हम गिन सकते हैं-एक, दो, तीन आदि। किन्तु 'दूध' को हम गिन नहीं सकते, केवल माप सकते हैंप्रेम-घृणा आदि की भी गिनती नहीं हो सकती। इस तरह संज्ञा के भेद हुए-

गणनीय और अगणनीय

 इस वर्गीकरण का व्याकरण की दृष्टि से महत्त्व यह है कि गणनीय संज्ञा वे हैं जिनके एकवचन और बहुवचन दोनों होते हैं।

अगणनीय संज्ञा का प्रयोग सदा एकवचन में होता है

 

तीसरा वर्गीकरण व्युत्पत्ति के आधार पर किया जाता है

व्युत्पत्ति की दृष्टि से संज्ञा के तीन भेद होते है

 

१.रूढ़ -      

      ऐसी संज्ञाएँ जिनके खंड निरर्थक होते हैं; जैसे- 'आम' 'आम' शब्द का 'आ' और 'म' अलग-अलग कर दें, तो इनका कुछ भी अर्थ नहीं हो सकता। घर, हाथ, पैर, मुँह आदि रूढ़ संज्ञा के उदाहरण हैं।

. यौगिक-

      ऐसी संज्ञाएँ जिनके खंड सार्थक होते हैं; जैसे-रसोईघर। रसोईघर के दो खंड हैं—'रसोई' और 'घर'। ये दोनों खंड सार्थक हैं। पाठशाला, विद्यार्थी, पुस्तकालय, हिमालय आदि यौगिक संज्ञा के उदाहरण हैं।

 

३. योगरूढ़-  

       ऐसी संज्ञाएँ जिनके खंड सार्थक हों, परन्तु जिनका अर्थ खंड-शब्दों से निकलने वाले अर्थ से भिन्न हो;      जैसे-पंकज। पंकज' के दोनों खंड 'पंक और 'ज सार्थक हैं। 'पंक' का अर्थ है 'कीचड़' और 'ज' का अर्थ है 'जन्मा हुआ'; किन्तु 'पंकज' का अर्थ होगा 'कमल' न कि 'कीचड़ से जन्मा हुआ।

चौथा वर्गीकरण अर्थ के आधार पर किया जाता है जो परम्परागत है

 इस दृष्टि से संज्ञा के पाँच भेद हैं

. व्यक्तिवाचक, २. जातिवाचक, ३. समूहवाचक, ४. द्रव्यवाचक और. भाववाचक।


१.व्यक्तिवाचक संज्ञा

       व्यक्तिवाचक संज्ञा किसी विशेष व्यक्ति या स्थान का बोध कराती है;

       जैसे-गंगा, तुलसीदास, पटना, राम, हिमालय आदि

२. जातिवाचक संज्ञा-

      जातिवाचक संज्ञा किसी वस्तु या प्राणी की संपूर्ण जाति का बोध कराती है।

       जैसे-गाय, नदी, पहाड़, मनुष्य आदि।

 

  गाय' किसी एक गाय को नहीं कहते, अपितु यह शब्द सम्पूर्ण गोजाति के लिए प्रयुक्त होता है।

       मनुष्य शब्द किसी एक व्यक्ति के नाम को सूचितकर 'मानव' जाति का बोध कराता है।

३. समूहवाचक संज्ञा-

        समूहवाचक संज्ञा पदार्थों के समूह का बोध कराती है;

        जैसे-गिरोह, झब्बा, झुंड, दल, समा, सेना आदि

       ये शब्द किसी एक व्यक्ति या वस्तु का बोधकराकर अनेक का-उनके समूह का बोध कराते हैं।

४. द्रव्यवाचक संज्ञा-

       द्रव्यवाचक संज्ञा किसी धातु या द्रव्य का बोध कराती है;

       जैसेघी, चाँदी, पानी, पीतल, सोना आदि।

द्रव्यवाचक संज्ञा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके पूर्ण रूप और अंश के नाम में कोई अन्तर नहीं होता, जबकि जातिवाचक के पूर्ण रूप और अंश के नाम में पर्याप्त अन्तर हो जाता है। एक टुकड़ा सोना भी सोना है और एक बड़ा खंड भी सोना है, एक बूंद घी भी घी है और एक किलो घी भी घी है; किन्तु एक पूरे वृक्ष के टुकड़े को हम वृक्ष कदापि नहीं कहेंगे। उसे लकड़ी, सिल्ली, टहनी, डाली आदि जो कह लें।

        द्रव्यवाचक संज्ञा से निर्मित पदार्थ जातिवाचक संज्ञा होते हैं

५. भाववाचक संज्ञा –

         भाववाचक संज्ञा व्यक्ति या पदार्थों के धर्म या गुण का बोध कराती है; जैसे-अच्छाई, चौड़ाई, मिठास, लंबाई, वीरता आदि।


भाववाचक संज्ञा में निम्नलिखित समाविष्ट होते हैं


 (क) गुण-कुशाग्रता, चतुराई, सौन्दर्य आदि ।

(ख) भाव-कृपणता, मित्रता, शत्रुता आदि।

(ग) अवस्था-जवानी, बचपन, बुढ़ापा आदि । (घ) माप-ऊँचाई, चौड़ाई, लम्बाई आदि ।


(ङ) क्रिया -दौड़ना, पढ़ाई, लिखाई आदि। (च) गति-फुर्ती, शीघ्रता, सुस्ती आदि।


(छ) स्वाद -कड़वापन, कसैलापन, तितास, मिठास आदि।


(ज) अमूर्त भावनाएँ-करुणा, क्षोभ, दया आदि।


भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण

 

भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण प्रायः सभी शब्द-भेदों से होता है। जैसे -संज्ञा के दो प्रमुख भेदों जातिवाचक और व्यक्तिवाचक से भाववाचक

 

संज्ञा बनायी जाती है।

 

१.जातिवाचक संज्ञा सेदूत-दौत्य, नर-नरता, नारी-नारीत्व, बूढ़ा-बुढ़ापा, मनुष्य-मनुष्यता आदि
२. व्यक्तिवाचक संज्ञा से- राम-रामत्व, रावण-रावणत्व, शिव - शिवत्व आदि।

 

३.    सर्वनाम से- अपना-अपनत्व, अहं-अहंकार, मम-ममता, ममत्व आदि।

.    विशेषण से- कठोर-कठोरता, गुरु-गुरुता, चौड़ा-चौड़ाई,

 

        बहुत-बहुतायत, सुन्दर-सुन्दरता, सौन्दर्य आदि।

 

५.    क्रिया  से   -खेलना-खेल, दिखाना- दिखाना, पढ़ाई पढ़ाई,

 

         बचना-बचत, बूझना-बुझौवल, मारना-मार, मिलना-मिलाप आदि।

 

६.    अव्यय सेसमीप-सामीप्य, दूर-दूरी आदि।









Comments

Popular posts from this blog

UNESCO World Heritage Sites in India

हिंदी व्याकरण - वर्ण

हिंदी व्याकरण अध्याय 7- अव्यय