हिंदी व्याकरण - वर्ण

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Lecture #1


वर्ण
वर्णों के भेद
वर्णों का उच्चारण स्थान

वर्ण



वह मूल ध्वनि जिसके खंडकिए जा सके वर्ण कहलाता है

    उदाहरण-अ, इ, ग्, ज्


यदि घर उदाहरण लेते हैं तो घर में भीऔरध्वनि सुनाई देती है यदि सावधानी से सुना जाए या विचार किया जाए तोमें भी दो वर्ण घ् औरसम्मिलित हैंइसी प्रकार से र‌ में र् औरसम्मिलित हैं

इन घ्  र् ध्वनियों का खंड नहीं कर सकते हैं अतः यह सभी मूल ध्वनि हैंयही वर्ण कहलाते हैं

वर्ण ही अक्षर कहलाते हैं अक्षर का मतलब होता है जो क्षरहो अर्थात जिनका विनाश ना हो‌‌। 

वर्णमाला


वर्णों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं हिंदी वर्णमाला में कुल 49 वर्ण है


वर्णों के भेद :-


वर्णों के दो भेद होते हैं स्वर और व्यंजन


स्वर वर्ण :-


स्वर उन वर्णों को कहते हैं जिन का उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से किया जा सकता है और यह व्यंजन वर्णों के उच्चारण में सहायक होते हैं 


हिंदी में कुल 11 स्वर हैं


अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ ओ


काल मान अर्थात समय के आधार पर  स्वर दो प्रकार के माने जाते हैं - ह्रस्व स्वर्ग और दीर्घ स्वर।

 

ह्रस्व स्वर


उच्चारण के काल मान को मात्रा कहते हैं। जिस स्वर के उच्चारण में एक मात्रा लगती है उसे ह्रस्व स्वर कहते हैं।


जैसे अ इ  ।


दीर्घ स्वर-


जिस स्वर के उच्चारण में 2 मात्राएं लगती हैं उसे दीर्घ स्वर कहते हैं


जैसे आ ई‌ ऊ ।


सजातीय स्वर या सवर्ण- समान स्थान से उत्पन्न होने वाले स्वर 


जैसे अ आ


विजातीय या असवर्ण - जिन स्वरों के स्थान और प्रयत्न एक से नहीं होते हैं


जैसे अ-इ,‌अ-उ आदि


स्वरों के उच्चारण:-


स्वरों के उच्चारण कई प्रकार से होते हैं


 निरनुनासिक- मुंह से बोले  जाने वाले सस्वर वर्ण। 


जैसे :-अ इ उ 


अनुनासिक- जिन का उच्चारण नाक और मुंह से होता है


जैसे :-ऑं उँ


सानुस्वार - जिन स्वरों का उच्चारण दीर्घ होता है और उनकी ध्वनि नाक से निकलती है


जैसे :-अं इं


विसर्गयुक्त विसर्ग भी अनुस्वार की तरह स्वर के बाद में आते हैंइनका उच्चारण स्थानकी तरह होता है


जैसे :- प्रायः  अंतःकरण  दु:ख  आदि


मात्रा


स्वर के खंडित रूपचिह्न को मात्रा कहते हैं


जैसे :    ा , ‍ि ,  ‍ी ,  ो


अ‌ का कोई मात्रा चिह्न नहीं होता हैजब यह किसी व्यंजन से जुड़ता है तो व्यंजन का हल चिह्न(्) लुप्त हो जाता है


र् +इ = रि , च् + अ = च, क् + ऋ = कृ


अनुस्वार- अनुस्वार स्वर और व्यंजन के बाद में लिखा जाता है


 जैसे - अंगूर अंगद कंकण


विसर्ग - विसर्ग स्वर और व्यंजन के बाद लिखा जाता है


जैसे- अतः अ + त् + अः =अत: ।



बारहखड़ी


व्यंजन के साथ स्वरों की मात्राएँ ( ऋ ॠ लृ )को छोड़कर अनुस्वार और विसर्ग  मिलाकर लिखने को बारह खड़ी कहते हैं


जैसे- का कि की कु कू के कै को कौ कं कः


व्यंजन वर्ण


व्यंजन उन वर्णों को कहते हैं जिनका उच्चारण स्वर वर्णों की सहायता के बिना नहीं हो सकता इनकी संख्या 33 है

व्यंजनों का वर्गीकरण


व्यंजनों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है


१.स्पर्श २ . अंतःस्थ ३ . ऊष्म

१ . स्पर्श - जो व्यंजन कंठ , तालु , मूर्धा ( तालु के ऊपर ) , दांत और ओष्ठ के स्पर्श से बोले जाते हैं उन्हें स्पर्श वर्ण कहते हैं


इनकी संख्या 25 हैइन्हें 5 समूहों में बांटा गया है जो निम्न प्रकार हैं


' क ' वर्ग - क ख ग घ ङ 

'च ' वर्ग - च छ ज झ ञ 

' ट ' वर्ग - ट ठ ड ढ ण

' त ' वर्ग - त थ द ध न

' प ' वर्ग - प फ ब भ म


२. अंतःस्थ -यह स्वर और व्यंजन के बीच स्थित है इसीलिए इन्हें अंतःस्थ कहा जाता हैइन्हें अर्ध स्वर भी कहा जाता है । 


जैसे - य र ल व


३. ऊष्म - इनका उच्चारण  घर्षण से उत्पन्न ऊष्म वायु से होता है इसीलिए इन्हें उष्म कहा गया है l

जैसे - श ष स ह ।


तल बिंदु वाले वर्ण


कुछ हिंदी शब्दों मेंऔरके नीचे और अरबी - फारसी में अ क ख ग ज फ के नीचे तथा कुछ अंग्रेजी शब्दों  मेंतथाके नीचे बिन्दु (तलबिंदु ) देते हैं।


 जैसे – 

हिन्दी - ड़ ढ़

फारसी - अरबी - क़  ग़ ज़ फ़

अंग्रेजी - ज़ फ़



अयोगवाह


अनुस्वार और विसर्ग को अयोगवाह कहा जाता है

यह दोनों ना तो स्वर है ना ही व्यंजन


उदाहरण - अं अः

व्यंजनगुच्छ


परिभाषा - व्यंजन के ऐसे समुदाय जो संयुक्त होकर शब्दों का निर्माण करते हैं व्यंजन गुच्छ कहलाते हैं जैसे बच्चा अच्छा यहां च् + च् और च् + छ्  दो व्यंजनों के गुच्छ हैं


अल्पप्राण और महाप्राण


संपूर्ण व्यंजन वर्णों को अल्पप्राण और महाप्राण दो वर्गों में बांटा जा सकता है


अल्पप्राण - जिन वर्णों के उच्चारण में हकार की ध्वनि नहीं सुनाई पड़ती है उन्हें अल्पप्राण कहते हैं

प्रत्येक वर्ग के प्रथम तृतीय पंचम वर्ण तथा य व र ल को अल्पप्राण कहते हैं


महाप्राण -  जिन वर्णों के उच्चारण में हकार की ध्वनि सुनाई पड़ती है उन्हें महाप्राण कहते हैं

प्रत्येक वर्ग के द्वितीय चतुर्थ वर्ण तथा श ष स ह महाप्राण कहलाते हैं


घोष और अघोष


१.घोष -जिन वर्णों के उच्चारण में स्वरतंत्र झंकार उत्पन्न करते हैं वह घोष कहलाते हैं


उदाहरण - सभी स्वर प्रत्येक वर्ग के तीसरे चौथे और पांचवें वर्ण और य र ल व ह घोष वर्ण हैं


२.अघोष – जिन वर्णों के उच्चारण में स्वरतंत्र में  झंकार उत्पन्न नहीं होती वह अघोष वर्ण कहलाते हैं


उदाहरण - प्रत्येक वर्ग के प्रथम द्वितीय तथा श ष स ।


वर्णों का उच्चारण स्थान


मुख के जिस भाग से वर्ण का उच्चारण होता है वह वर्ण का उच्चारण स्थान कहा जाता है  यह 6 है।


१.कंठ - अ , आ , कवर्ग , विसर्ग तथा

२.तालु - इ, ई, चवर्ग, य, श

३. मूर्धा - ऋ ॠ टवर्गऔर

४. दन्तलृ, तवर्गऔर

 ५.ओष्ठ - उ ऊ और पवर्ग

६. नासिका - इन वर्णों के उच्चारण स्थान में दाँत ओष्ठ  के अतिरिक्त नाक की भी सहायता ली जाती है

उदाहरण - ङ ञ ण न म और अनुस्वार तथा चन्द्रबिन्दु

                      

मुख के दो भागों की सहायता से भी वर्णों का उच्चारण किया जाता है


जैसे -


कंठ तालव्य - ए ऐ

कंठोष्ठ - ओ औ

दन्तोष्ठ - व ।


अनुतान


जब हम बोलते हैं तो उस ध्वनि में उतार-चढ़ाव आते हैं इसी को अनुतान कहते हैं


लिपि


किसी भाषा में ध्वनि को चित्रात्मक रूप देने के लिए कुछ चिह्नों की आवश्यकता होती है जो उन ध्वनियों का स्थान ग्रहण कर सकें ।  इन्हीं चिह्नों या चित्रात्मक प्रतीकों को लिपि की संज्ञा दी जाती है


हिंदी तथा संस्कृत की लिपि देवनागरी है


देवनागरी लिपि बाएं से दाएं लिखी जाती है


हिंदी में कुछ वर्णों की 2 -2 रूप देखे जा सकते हैं


जैसे – 


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