हिंदी व्याकरण अध्याय 7- अव्यय
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Lecture #7
अव्यय
अव्यय के भेदहिंदी व्याकरण
अध्याय 7
अव्यय
परिभाषा-जिस शब्द रूप में किसी कारण भी कोई विकार नहीं पैदा होता उसे अव्यय कहते हैं;
जैसे -अभी, जब, तब आदि।
अव्यय के भेद-अव्यय के चार भेद हैं
१. क्रियाविशेषण, २. सम्बन्धबोधक, ३. समुच्चयबोधक और ४. विस्मयादिबोधक।
1. क्रिया विशेषण
परिभाषा-जिस अव्यय से क्रिया की कोई विशेषता जानी जाती है, उसे क्रियाविशेषण' कहते हैं।
यहाँ, वहाँ, धीरे, जल्दी, अभी, बहुत आदि शब्द क्रियाविशेषण हैं।
राम वहाँ जा रहा है।
इस वाक्य में 'वहाँ शब्द क्रिया विशेषण है, क्योंकि यह 'जाना' क्रिया की स्थान-सम्बन्धी विशेषता बतलाता है।
'वह आज पढ़ने गया है तथा
'उससे बाजार में अचानक भेंट हो गयी'-
इन वाक्यों में आये आज' तथा 'अचानक' शब्द क्रमशः क्रिया का काल तथा रीति से सम्बद्ध विशेषता बताते हैं।
'वह बहुत खाता है' में 'बहुत' शब्द 'खाना' क्रिया की परिमाण (मात्रा)-सम्बन्धी विशेषता बतलाता है।
क्रियाविशेषणों का वर्गीकरण तीन आधारों पर किया जाता है- (क) प्रयोग, (ख) अर्थ और (ग) रूप।
(क) प्रयोग- प्रयोग के आधार पर क्रिया विशेषण के तीन भेद
(अ) साधारण, (आ) संयोजक और (इ) अनुबद्ध ।
(अ) साधारण क्रियाविशेषण उन क्रियाविशेषणों को कहते हैं जिनका प्रयोग वाक्य में स्वतंत्र रूप होता है, जैसे-अब, जल्दी, कहाँ आदि ।
(आ) संयोजक क्रियाविशेषण उन क्रियाविशेषणों को कहते हैं, जिनका सम्बन्ध उपवाक्य से रहा करता है। ये क्रियाविशेषण सम्बन्धवाचक सर्वनामों के बनते हैं;
जैसे—जब आप आयेंगे, तब मैं घर जाऊँगा; जहाँ आप जायेंगे, वहाँ मैं भी जाऊँगा। यहाँ 'जब-तब, जहाँ, वहाँ संयोजक क्रियाविशेषण है।
(इ) अनुबद्ध क्रियाविशेषण उन क्रियाविशेषणों को कहते हैं, जिनका प्रयोग किसी शब्द के साथ अवधारणा के लिए होता है;
जैसे -तो, तक, भर, भी आदि।
(ख) अर्थ- अर्थ के आधार पर क्रिया विशेषण के चार भेद है.
(अ) स्थानवाचक, (आ) कालवाचक, (इ) परिमाणवाचक और (ई) रीतिवाचक।
(अ) स्थानवाचक क्रिया विशेषण-यह दो प्रकार के हैं
स्थितिवाचक-यहाँ, वहाँ, साथ, बाहर भीतर आदि।
दिशावाचक-इधर, उधर, किधर, दाहिने, बायें आदि।
(आ) कालवाचक क्रिया विशेषण-के तीन प्रकार हैं
समयवाचक-आज, कल, जब, पहले, तुरत, अभी आदि।
विधिवाचक-आजकल, नित्य, सदा, लगातार, दिनभर आदि।
पौनः पुन्य (बार-बार)-वाचक बहुधा, प्रतिदिन, कई बार, हर बार आदि।
(इ) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण-यह भी कई प्रकार का है
अधिकताबोधक बहुत, बड़ा, भारी, अत्यन्त आदि। न्यूनतम बोधक-कुछ, लगभग, थोड़ा, प्रायः आदि ।
पर्याप्तिबोधक केवल, बस, काफी, ठीक आदि।
तुलनाबोधक-इतना, उतना, कम, अधिक आदि। श्रेणीबोधक-थोड़ा-थोड़ा, क्रमशः आदि ।
(ई) रीतिवाचक क्रियाविशेषण -इस क्रियाविशेषण से प्रकार, निश्चय, अनिश्चय, स्वीकार, कारण, निषेध आदि अनेक अर्थ प्रकट होते हैं;
जैसे- ऐसे, वैसे, अवश्य, सही, यथासम्भव, इसलिए, नहीं तो, ही, भी आदि ।
(ग) रूप- रूप के आधार पर क्रिया विशेषण के तीन प्रकार होते हैं-
(अ ) मूल, (आ) यौगिक और (इ) संयुक्त।
(अ) मूल क्रियाविशेषण-जो क्रियाविशेषण किसी दूसरे शब्द के मेल से नहीं बनते, वे 'मूल क्रियाविशेषण' कहे जाते हैं,
जैसे-अचानक, दूर, ठीक
(आ) यौगिक क्रिया विशेषण-जो क्रियाविशेषण किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय या शब्द जोड़ने से बनते हैं, वे 'यौगिक क्रियाविशेषण' कहे जाते हैं। ये क्रिया विशेषण संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, अव्यय तथा धातु में प्रत्यय योग से बनते हैं; उदाहरण-मन से, देखते हुए, यहाँ तक, वहाँ पर आदि।
(इ) संयुक्त क्रिया विशेषण-ये कई प्रकार से बनते हैं;
जैसे संज्ञाओं की द्विरुक्ति से-घर-घर, घड़ी-घड़ी।
दो भिन्न संज्ञाओं के मेल से-रात-दिन, सांझ-सवेरे ।
2. सम्बन्धबोधक
परिभाषा-जो अव्यय संज्ञा के बाद आकर उसका सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्द के साथ बतलाता है, उसे 'सम्बन्धबोधक' कहते हैं।
जैसे-वह दिनभर रोता रहा;
दवा के बिना रोगी मर गया
पहले वाक्य में 'भर' शब्द दिन का सम्बन्ध रोना से और दूसरे वाक्य में 'बिना शब्द दवा का सम्बन्ध मरना से बतलाता है।
सम्बन्धबोधक के भेद
इन तीन आधारों पर सम्बन्धबोधक सम्बद्ध, अव्यय के भेद किये गये हैं।
१. प्रयोग के अनुसार-इसके दो भेद हैं-
(क) सम्बद्ध (ख) अनुबद्ध ।
(क) सम्बद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय संज्ञाओं की विभक्तियों के बाद आते हैं, जैसे-भोजन से पहले घर के बिना। यहाँ 'पहले' और 'बिना सम्बद्ध सम्बन्धबोधक है क्योंकि ये भोजन' तथा 'घर शब्द की विभक्ति (क्रमशः) से और 'के' के बाद आये हैं।
(ख) अनुबद्ध संबंधबोधक अव्यय संज्ञा के विकृत रूप के बाद आते हैं;
जैसे-बच्चों-सहित, वर्षों तक, कटोरेभर ।
यहाँ 'सहित', 'तक' तथा त अनुबंध सम्बन्ध सूचक हैं,
२. अर्थ के अनुसार-सम्बन्धबोधक अव्यय के अनेक प्रकार हो है; जैसे
(क) कालवाचक-आगे, पीछे, पहले, बाद आदि।
(ख) स्थानवाचक -नजदीक, समीप, भीतर आदि।
(ग) सादृश्य वाचक -समान, तरह, तुल्य आदि।
(घ) तुलनावाचक-अपेक्षा, बनिस्बत आदि।
इसी प्रकार अन्य भेद भी हैं।
३. व्युत्पत्ति के अनुसार-सम्बन्धबोधक अव्यय के दो भेद हैं-
(क) मूल और (ख) यौगिक
(क) मूल सम्बन्धबोधक अव्यय-बिना, पर्यन्त आदि।
(ख) यौगिक सम्बन्धबोधक अव्यय -ये दूसरे शब्दों से बने होते हैं; जैसे-वास्ते, तुल्य, पीछे
आदि ।
3. समुच्चयबोधक
परिभाषा-जो अव्यय एक वाक्य या शब्द का सम्बन्ध दूसरे वाक्य या शब्द से बतलाता है, उसे 'समुच्चयबोधक' कहते हैं,
जैसे-राम आया और श्याम गया; राम और श्याम दौड़ रहे हैं।
इनमें से प्रथम वाक्य में 'और' शब्द राम आया तथा 'श्याम गया-इन दोनों वाक्यों को जोड़ता है और दूसरे वाक्य में 'राम दौड़ रहा है' तथा 'श्याम दौड़ रहा है को जोड़ता है।
दूसरे वाक्य में राम और श्याम दोनों की क्रिया एक ही है-'दौड़ना'; अतः इसे बहुवचन में रख दिया गया है तथा 'और शब्द को दोनों संज्ञाओं के बीच कुछ लोग इस तरह के वाक्य में संज्ञा-संज्ञा का सम्बन्ध भी मानते हैं।
समुच्चयबोधक के भेद
समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद हैं-१. समानाधिकरण, २. व्यधिकरण।
इसके चार भेद हैं-(क) संयोजक, (ख) विभाजक, (ग) विरोधदर्शक, (घ) परिणाम दर्शक।
(क) संयोजक-इनके द्वारा दो या अधिक मुख्य वाक्यों का संग्रह होता है;
जैसे—राम खेलता है और श्याम पढ़ता है संयोजक अव्यय-और, व, एवं, तथा, भी।
(ख) विभाजक-ये अव्यय दो या अधिक वाक्यों या शब्दों में से किसी एक का ग्रहण अथवा सबका त्याग बतलाते हैं; जैसे-फल राम ने खाया होगा या मोहन ने। यहाँ 'या' शब्द राम तथा मोहन में से एक का ग्रहण करता है। मनमोहन आयेगा न सोहन' । यहाँ 'न से 'मोहन' और 'सोहन' दोनों का त्याग सूचित होता है। विभाजक अव्यय-या, ना, अथवा, कि, या या, चाहे-चाहे, नहीं तो, न, न–न, कि आदि।
(ग) विरोधदर्शक-ये अव्यय दो वाक्यों में विरोध दिखलाते हुए किसी का ग्रहण या निषेध बतलाते हैं।
जैसे-राम आया, परन्तु श्याम नहीं आ सका। विरोधदर्शक अव्यय-पर, परन्तु, किन्तु, लेकिन, मगर, बल्कि, ।
(घ) परिणाम दर्शक -इन अव्ययों से ज्ञात होता है कि अगले वाक्य का अर्थ पिछले वाक्य के अर्थ का परिणाम है,
जैसे-माँ ने खूब पीटा, इसलिए श्याम भाग गया।
श्याम के भागने का कारण माँ को पीटना है। परिणामदर्शक अव्यय-इसलिए, अतः, अतएव, सो।
२. व्यधिकरण-व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय उन अव्यय को कहते है, जिनसे एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते हैं.
जैसे—तपोवन वासियों को विघ्न न हो, इसलिए रथ यहीं रोकिए। व्यधिकरण समुच्चयबोधक के भी चार भेद हैं
(क) कारणवाचक क्योंकि, जोकि, इसलिए कि ।
(ख) उद्देश्यवाचक-कि, जोकि, ताकि, इसलिए कि।
(ग) संकेतवाचक-यद्यपि तथापि, यदि-तो, जो- तो, चाहे -परन्तु, कि।
(घ) स्वरूपवाचक-कि, जो, अर्थात्, यानी, मानो
4. विस्मयादिबोधक
परिभाषा-जिन शब्दों से हर्ष, शोक, आश्चर्य आदि के भाव सूचित होते हैं, परन्तु जिनका सम्बन्ध वाक्य या उसके किसी पद से नहीं होता, उन्हें 'विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं।
जैसे-
हाय ! मेरा सब कुछ लुट गया।
ओह ! यह क्या हो गया।
विस्मयादिबोधक के भेद
विस्मयादिबोधक अव्ययों से अनेक प्रकार के भाव प्रकट होते हैं। इस आधार पर इसके कई भेद किये जा सकते हैं।
२. आश्चर्यबोधक -वाह, हैं, ओहो, क्या आदि।
३. तिरस्कार बोधक-छिः, हट, चुप, धिक् आदि। ४. स्वीकारबोधक-हाँ, जी हाँ, अच्छा आदि।
५. सम्बोधनबोधक -अजी, हे, अरे आदि।
६. अनुमोदनबोधक-ठीक, वाह आदि।
विस्मयादिबोधक अव्यय के बाद !' चिह्न आता है।
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