हिंदी व्याकरण - शब्द

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हिंदी व्याकरण
अध्याय 2
शब्द


परिभाषा-  एक या अधिक अक्षर से बनी हुई स्वतंत्र एवं सार्थक ध्वनि

                 या ध्वनि-समूह को 'शब्द' कहते हैं।

              

              जैसे-मैं, तू, लड़का, छोटा, वह इत्यादि


शब्दों के भेद

         अर्थ की दृष्टि से-अर्थ की दृष्टि से कुछ वैयाकरणों ने शब्दों के दो भेद माने हैं-

          (क) सार्थक और (ख) निरर्थक

(क) सार्थक-      सार्थक शब्द वे हैं, जिनका कोई निश्चित अर्थ होता हैजैसे-राम, श्याम, लोटा, सीधा आदि

(ख) निरर्थक-     निरर्थक शब्द उस ध्वनि या ध्वनि समूह को कहते है, जिसका कोई परम्परागत या कोषगत अर्थ नहीं होताजैसे-चें-चें, हल्ल, कल्ल इत्यादि


उत्पत्ति की दृष्टि सेउत्पत्ति के विचार से शब्दों के पाँच भेद हैं-

              (क) तत्सम, (ख) अर्धतत्सम, (ग) तद्भव, (घ) देशज और (ङ) विदेशज।

(क) तत्सम -  तत्सम संस्कृत के उन शब्दों को कहते है, जो हिन्दी में ज्यों के-त्यों ले लिये गये हैं।

 जैसेजीवन, यात्रा, प्रयोग, निवास, पथिक इत्यादि

 (ख) अर्ध तत्सम–  अर्ध तत्सम उन शब्दों को कहते हैं, जो संस्कृत से ईषत् परिवर्तित होकर हिन्दी में आये हैं। ये शब्द संस्कृत के अधिक निकट हैं।

 जैसेकार्य से-कारज, चूर्ण से-चूरन, अग्नि से-आग आदि।

(ग) तद्भव-      तद्भव उन शब्दों को कहते हैं, जो संस्कृत से ही लिये गये हैं, परन्तु हिन्दी में आने पर जिनका रूप बदल गया है।

जैसे      मक्र से मगर, शृगाल से सियार आदि


 (घ) देशज-     देशज उन शब्दों की संज्ञा है, जो किसी दूसरी भाषा के नहीं है, अपितु देश के लोगों की ही बोल-चाल से बने हैं

जैसे-डोंगी, पिल्ला, छाती, चटपट, कोड़ी, खोट, मूंग इत्यादि

(ङ) विदेशज -     विदेशज वे शब्द हैं, जो विदेशी भाषाओं से लिये गये हैं

जैसे - अरबी से एतराज, एतराज, तारीख, अदालत, कर्ज आदिफारसी से–चापलूस, चाकू, चश्मा, आराम, आवारा आदि

          अंग्रेजी से-कॉलेज, स्कूल, टेबुल, रेल, पुलिस आदि

          तुर्की से-कैंची, खजांची, चमचा, चेचक, लाश आदि

          पुर्तगाली से–फीता, बालटी, चाबी, अलमारी, किरानी आदि


     व्युत्पत्ति या रचना की दृष्टि से -      रचना के विचार से शब्द के तीन प्रकार होते हैं-

(क) रूढ़, (ख) यौगिक और (ग) योगरूढ़ । 


(क) रूढ़-

                       रूढ़ शब्द वे है जिनका कोई भी खण्ड सार्थक नहीं होता और जो परम्परा से किसी अर्थ में प्रयुक्त होते है।

 जैसे-लोटा, घर, बरतन आदि।

 'लोटा' शब्द के यदि दो भाग किये जायेँ, तो पहला 'लो' होगा और दूसरा टा' होगा। इन दोनों भागों का, अलग-अलग रहने पर, कोई अर्थ नहीं होता। अतः इस तरह के शब्द को रूढ़ कहते हैं।

(ख) यौगिक  यौगिक उन शब्दों को कहते हैं जिनके खण्डों का अर्थ होता है।

जैसे-गाड़ीवान, विद्यालय, देवमंदिर आदि

 'देव मंदिर' के दो भाग हैं—देव और मंदिर। इन दोनों खंडों का अपना अलग-अलग अर्थ है। जैसे—'देव' का अर्थ हुआ देवता और 'मंदिर का अर्थ हुआ गृह। इसी तरह, विद्या-आलय विद्यालय और गाड़ीवान गाड़ीवान शब्द भी यौगिक हैं।

(ग) योगरूढ-

                              योगरूढ़ उन शब्दों की संज्ञा है, जिनके खंड सार्थक हों, परन्तु जो शब्द खंड-शब्दों से निकलनेवाले अर्थ से भिन्न अर्थ प्रकट करते हों।

 जैसे- पंकज पंक से उत्पन्न होनेवाला।

          पंक से उत्पन्न होने वाली सभी चीजों को 'पंकज नहीं कहते यह शब्द पंक' तथा 'ज' इन दो खंडों के योग से बना है। अतएव इसमें यौगिक शब्द का गुण है।

          व्युत्पत्ति के अनुसार इस शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है, परन्तु व्यवहार में 'कमल के लिए रूढ़ हो गया है अतः इसे योगरूढ़ कहते हैं।

अन्य उदाहरण के लिए    लम्बोदर, गिरिधारी, जलद, पयोद, नीलाम्बर इत्यादि शब्दों को   ले  सकते हैं।

 

       रूपान्तर की दृष्टि से

         रूपान्तर के आधार पर भी शब्दों के दो भेद किये गये हैं-

(क) विकारी और (ख) अविकारी।

 (क) विकारी-   विकारी उस शब्द को कहते हैं, जिसका रूप लिंग, वचन, कारक-प्रत्यय और क्रिया-प्रत्यय के अनुसार बदलता है।

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया विकारी शब्द है

(ख) अविकारी-   

                                अविकारी शब्द किसे कहते हैं, जिसका रूप लिंग, वचन, कारक-प्रत्यय और क्रिया-प्रत्यय के अनुसार नहीं बदलता अर्थात् सदा एक-सा ही रहता है।

 इसे 'अव्यय' भी कहते हैं

क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक अविकारी या 'अव्यय' कहे जाते हैं।


टिप्पणी-अंग्रेजी व्याकरण के अनुसार शब्दों के भेद आठ माने गये हैं

      1. संज्ञा, २. सर्वनाम, ३. विशेषण, ४. क्रिया, ५. क्रिया-विशेषण, ६. समुच्चय बोधक, ७. सम्बन्धबोधक, ८. विस्मयादिबोधक।

         इनमें से क्रिया-विशेषण, समुच्चयबोधक, सम्बन्धबोधक और विस्मयादिबोधक हिन्दी शब्द-भेदों में 'अव्यय' के अंतर्गतगये हैं।

         अतः हिन्दी के शब्द-भेद  को आठमानकर पाँच ही मानें, तो कोई हर्ज नहीं।

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